Tripathi Gyanendra ( लखनऊ): अखिलेश बनाया योगी। दोनों के बीच में जितनी दूरी, उतनी ही नजदीकी। दूरी सियासी है। नजदीकी संघर्षों की है। योगी को भाजपा में ही रहकर लड़ना पड़ा तो अखिलेश को अपने चाचा से ही दो दो हाथ करना पड़ा। चाचा शिव पाल को हार माननी पड़ी और भतीजे अखिलेश की कमान स्वीकारनी पड़ी। केशव प्रसाद को अपनी इच्छाएं मारनी पड़ी और योगी शरणम् गच्छामि की टेर लगानी पड़ी। अब अखिलेश सपा के लिए जरूरी हैं तो योगी भाजपा के लिए मजबूरी हैं। दोनों की उम्र में कोई खास अंतर नहीं है। अखिलेश को लाल टोपी पसंद है तो योगी आदित्यनाथ की पसंद भगवा धोती है। अखिलेश को लोग यादववादी बताते हैं तो योगी को ठाकुरवादी। दोनों यूपी के इकलौते विकल्प हैं। बात बात पर जब चाहे लड़ लेते हैं। बगैर शरीर के झगड़ लेते हैं। बगैर अखाड़े के दांव लेते हैं। योगी आदित्य नाथ गोरखनाथपीठ के घोषित महंत है तो अखिलेश यादवों के अघोषित सरपंच हैं। आज इनकी नायाब लड़ाई पढ़ाएंगे। दोनों का संबंध माफिया डान दाउद से रहा है, ऐसा इन्हीं के हवाले से बताएंगे।
लिंक एक्सप्रेस-वे पर भिड़े योगी अखिलेश
20 जून को अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ लिंक एक्सप्रेस-वे पर भिड़ गए। तब भी जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आजमगढ़ में थे और अखिलेश लखनऊ में । योगी एक्सप्रेस-वे को लोकार्पित कर रहे थे और अखिलेश प्रेस प्रतिनिधियों को संबोधित कर रहे थे। हुआ यूं कि जब योगी की सियासत एक्सप्रेस लिंक एक्सप्रेस-वे पर गतिमान हुई तो अखिलेश के ट्रैक पर चढ़ बैठी।
योगी ने कहा कि वे विकास नहीं करते थे। वे तो मुंबई की डी कंपनी को पालते थे। डी कंपनी को दाऊद गिरोह को पालते थे। पार्टनरशिप करते थे। उनके साथ मिलकर बंदर बांट करते थे। सुरक्षा में सेंध लगाते थे। कोई आतंकी वारदात होती थी बदनाम आजमगढ़ होता था। यह टक्कर इतनी जोर की थी कि लखनऊ में अखिलेश यादव की प्रेसवार्ता हिल उठा। फिर क्या सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी अपनी सियासी गाड़ी में चाबी भर दी।
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा आप डी कंपनी किसको बोलते हैं, उनका मीडिया एडवाइजर जिसने हमारे खिलाफ पैसे देकर प्रेस के लोगों में चलवाया न्यूज, उसका नाम एक्सपोज हो गया। याद कीजिए नाम सब जान गए सब पत्रकार जानते हैं उसका नाम। उसका लेनदेन तो डी कंपनी से ही था। इसलिए उन्हें डी कंपनी याद आ रही है। बताओ डी कंपनी से लेनदेन था कि नहीं था। डी कंपनी से लेन देन था और जमीनी लेनदेन है। जमीनी रिश्ते हैं। ऐसे वैसे रिश्ते नहीं है, जमीनी रिश्ते हैं और जिससे रिश्ते हैं वो कहां है, कंपनी वाला किस देश में है।
अब सवाल ये उठता है कि माफिया डान दाउद इब्राहिम से सीएम योगी और अखिलेश के संबंध रहे है जैसा कि दोनों एक दूसरे के बारे में बता रहे हैं तो ये दोनों संवैधानिक पद पर कैसे हैं। अगर सियासत कर रहे हैं तो इस तरह की सियासत का क्या मतलब है, क्या जनता को मूर्ख समझ रहे हैं।
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