Tripathi Gyanendra ( लखनऊ ): भारत की संप्रभुता को 15 बार चुनौती देने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ईरान में धकियाए गए, लतियाए गये। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार अमेरिकी अफसर सैन्य ठिकानों को बचाने के लिए गिड़गिड़ाते देखें गये। अब मोदी सरकार ये कह सकती है कि मूक बधिर बनकर हम ट्रंप का मन बिगाड़े नहीं होते तो ट्रंप कैसे धकियाए गये होते, लतियाए गये होते। बात तो सही है। ट्रंप को चौधरी बनने का चस्का तो हमने ही लगाया। पर एक बात में ईरान अलग दिखा। भारत पाकिस्तान पर जब डोनाल्ड ट्रंप ने सीजफायर लिखा तो हम 37 दिन बाद मुखर हुए। पर, जब इस फार्मूले को ट्रंप ने ईरान पर अपनाया तो ईरान ने सुबह होते ही इस्राइल पर हमलों की झड़ी लगा दी। फिर क्या डोनाल्ड ट्रंप माई फ्रेंड ने उस कहावत को बखूबी चरितार्थ किया, कि सौ-सौ जूता खाए। तमाशा घुस के देखे। ऐसे में ईरान ने मानसिक जीत हासिल कर खूब जश्न मनाया।
डोनाल्ड ट्रंप को ले डूबी मनमानी, फिसड्डी साबित हुई कहानी
दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप को सबकुछ जल्दी और मनमाफिक चाहिए। ऐसा करके उंहोंने दिखाया भी है। मनमाफिक प्रेमिकाएं मनमाफिक पत्नियां, मन के माफिक व्यापार, मन के माफिक ही दो दो बार अमेरिकाजैसी महाशक्ति का राजपाठ, और मन के माफिक फ्रेंड। इस मन के माफिक रूट पर चलते हुए उनका मन इस कदर बढ़ा कि वे विश्व पूरे पर ही मन माफिक राज करने का सपना देखने लगे। बात टैरिफ से शुरू हुई और बगैर प्रतिरोध बकवास दर बकवास करने की सफलता मेरे भारत पर मिली। ट्रंप का मन इससे इतना बढ़ा कि भारत पाकिस्तान युद्ध के बीच सीजफायर की घोषणा कर दी। मिनटों बाद हमने मुहर लगा दी। युद्ध रुक गया।आपरेशन सिंदूर के रूप में कहां चल रहा है पता नहीं। इस घटना से ट्रंप का मन इतना बढ़ा कि वे एक दो बार नहीं पंद्रह बार हमारे संप्रभुता पर करते हुए यह कहते नहीं थके कि भारत पाकिस्तान के बीच में सीजफायर मैंने कराया। हद तो तब हो गई जब ट्रंप के मित्र और हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी मौनव्रती बने रहे। इस बात का परिणाम यह निकला कि ट्रंप भारत पाकिस्तान के बीच खुद के द्वारा कराए गए कथित सीजफायर पर शांति का सर्वोच्च सम्मान नोबेल मांग बैठे। तब भी जबकि शांति से कभी आलिंगन करते हुए पकड़े नहीं गए। पकड़े ऊं ईरान में, शांति के साथ नहीं चौधराहट की क्रांति के साथ।
भारत-पाक युद्ध की तर्ज पर इस्राइल-ईरान के बीच में कूदे, खाई में गिरे
भारत के मुद्दे पर बिगड़े ट्रंप को चौधराहट का चस्का ऐसा लगा कि वे सीधे तौर पर ईरान इस्राइल की जंग में कूद गए। बी टू बमवर्षक विमान से ईरान के तीन परमाणु संयंत्रों पर हमले कर बैठे। नतीजा, नतीजे वही निकला, खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना। यहां से ऐसा कुछ भी नहीं मिला जो इस बात को प्रमाणित कर सके कि ईरान परमाणु बम बना रहा है। ट्रंप ने अपने इस शौर्य पर वैसे ही ट्यूट किया जैसे भारत पाक की जंग पर किया था। लेकिन यहां ट्रंप ये भूल गए कि यहां भारत नहीं ईरान है जिसे जंग दर जंग में मरने मारने का अभ्यास है। शांति इधर से होकर कभी भी नहीं गुजरती है। मौन को यहां कौन जानता है। मुखर ही इसकी पहचान है, गलत है या सही इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। फिर क्या बदला लेने को ईरान मुखर हुआ तो वह हुआ जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद कभी अमेरिका के साथ नहीं हुआ। जंग की धार को अमेरिका की तरफ सीधा करते हुए ईरान ने अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर एक एक कर छह मिसाइलों को दाग डाला। कतर का सबसे बड़ा अमेरिकी सैन्य ठिकाना तबाह हो गया। क्रांति से शांति के नोबेल को लेनें निकले ट्रंप माघ फ्रेंड का दिमाग ठंडा हो गया, लेकिन उस कहावत का क्या करते कि कुत्ते दुम कभी सीधी नहीं होती।
मिसाइलों की चोट से याद आया युद्ध में शांति का पाठ
क्रांति पर छह मिसाइलों की चोट खाने के बाद ट्रंप ने शांति का पाठ शुरू किया। कतर के सहयोग से इस्राइल ईरान के बीच सीजफायर तय हुआ। दोनों देश इसपर कुछ बोलते कि ट्रंप माई फ्रेंड वही सब कर बैठे जो भारत के साथ कर चुके थे। सबसे पहले ही यह ट्यूट कर डाले कि ईरान-इस्राइल के बीच सीजफायर। ये ट्यूट कर ट्रंप सोये ही थे कि ईरान ने इस्राइल पर धमाके दर धमाके कर डाले। ट्रंप की चौधराहट चिंदी चिंदी उड़ गई। अब देखना यह है कि इसे ट्रंप बटोरते कैसे हैं।