PT News ( सेंट्रल डेस्क ): अमेरिका द्वारा ईरान के तीन सैन्य ठिकानों पर हमले के जवाब में ईरान की संसद ने होर्मुज जलसंधि को बंद करने का प्रस्ताव पारित किया है। इसपर अंतिम निर्णय ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल व सुप्रीम लीडर आयतुल्ला अली खामेनेई को लेना है। अगर ऐसा हुआ तो पूरी दुनिया के साथ ही भारत को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
होर्मुज जलसंधि बंद होने से भारत की ऊर्जा आपूर्ति और अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। तेल की कीमतों में उछाल, महंगाई, और व्यापारिक रुकावटें भारत के लिए चुनौती बन सकती हैं। हालांकि, भारत के पास वैकल्पिक स्रोत और सीमित तेल भंडार हैं, जो अल्पकालिक राहत दे सकते हैं, लेकिन दीर्घकालिक समाधान के लिए कूटनीतिक और रणनीतिक उपायों की आवश्यकता होगी।
ईरान ने पहले भी इस जलसंधि को बंद करने की धमकी दी थी। विशेष रूप से 2012 और 2018 में अमेरिकी प्रतिबंधों के जवाब में, लेकिन तब इसे लागू नहीं किया गया, लेकिन इस बार यह होते दिख रहा है क्योंकि इजरायल और अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव के संदर्भ में ईरान ने जलसंधि को बंद करने की तैयारी शुरू कर दी है, जिससे वैश्विक ऊर्जा बाजार में चिंता बढ़ गई है।
क्या है होर्मुज जलसंधि का महत्व
होर्मुज जलसंधि ईरान और ओमान के बीच स्थित है। फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ती है। यह वैश्विक तेल व्यापार का एक महत्वपूर्ण मार्ग है। यहां से विश्व का 21 प्रतिशत कच्चा तेल (प्रतिदिन करीब 20 मिलियन बैरल) और 20% तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) गुजरता है। भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे एशियाई देश इस मार्ग से अपने अधिकांश तेल और गैस आयात पर निर्भर हैं।
क्या पड़ेगा भारत पर प्रभाव
भारत में 85 से 90 प्रतिशत तेल आयात पर निर्भर है, जिसमें से 40% से अधिक मध्य-पूर्व (इराक, सऊदी अरब, यूएई, कुवैत) से होर्मुज जलसंधि के रास्ते आता है। भारत प्रतिदिन 5.5 मिलियन बैरल तेल की खपत करता है, जिसमें से 1.5 मिलियन बैरल इस जलसंधि मार्ग से होकर आता है।
अगर यह मार्ग बंद होता है, तो तेल और LNG की आपूर्ति में रुकावट होगी, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार कच्चे तेल की कीमत 120 से 130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है।
भारत पर आर्थिक प्रभाव
तेल की कीमतों में वृद्धि से भारत का आयात बिल बढ़ेगा, जिससे चालू खाता घाटा (CAD) 0.55% GDP तक बढ़ सकता है और CPI मुद्रास्फीति में 0.3% की वृद्धि हो सकती है। परिवहन, खाद्य पदार्थ, और विनिर्माण लागत बढ़ने से आम आदमी की जेब पर बोझ पड़ेगा। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतें बढ़ सकती हैं। रुपये पर दबाव बढ़ेगा, जिससे आयात और महंगा होगा और रिजर्व बैंक को ब्याज दरों पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
व्यापार और शिपिंग पर असर
होर्मुज जलसंधि बंद होने से समुद्री व्यापार प्रभावित होगा, जिससे शिपिंग लागत और बीमा प्रीमियम बढ़ेगा। इससे भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्धा प्रभावित हो सकती है।भारत और यूरोप के बीच प्रस्तावित इकनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) जैसे व्यापारिक प्रोजेक्ट्स भी प्रभावित हो सकते हैं।
वैकल्पिक उपाय और भारत की स्थिति
भारत के पास रूस, अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे वैकल्पिक तेल स्रोत हैं, जो होर्मुज जलसंधि पर निर्भर नहीं हैं, लेकिन ये स्रोत महंंगे हो सकते हैं। भारत के पास 74 दिनों का तेल भंडार है, जिसमें IOCL, BPCL, HPCL और इंडियन स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व्स शामिल हैं, जो अल्पकालिक संकट में राहत दे सकते हैं।भारत ने पहले 2019 में होर्मुज में टैंकरों पर हमले के बाद नौसेना तैनात की थी और कूटनीतिक उपाय किए थे।
वर्तमान स्थिति और भारत की प्रतिक्रिया
भारत ने होर्मुज जलसंधि की स्थिति पर नजर रखने के लिए जहाज सूचना प्रणाली लागू की है। वाणिज्य मंत्रालय ने हाल ही में इस मुद्दे पर आपात बैठक बुलाई थी, जिसमें व्यापार पर प्रभाव का आकलन किया गया। भारत कूटनीतिक रूप से तटस्थ रहते हुए ऊर्जा आपूर्ति की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक स्रोतों और मार्गों पर विचार कर रहा है। होर्मुज जलसंधि को बंद करने की ईरान की धमकी से भारत की ऊर्जा आपूर्ति और अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। तेल की कीमतों में उछाल, महंगाई, और व्यापारिक रुकावटें भारत के लिए चुनौती बन सकती हैं। हालांकि, भारत के पास वैकल्पिक स्रोत और सीमित तेल भंडार हैं, जो अल्पकालिक राहत दे सकते हैं, लेकिन दीर्घकालिक समाधान के लिए कूटनीतिक और रणनीतिक उपायों की आवश्यकता होगी।