योगी को दिखा अंसारी परिवार की आपदा में अवसर

योगी को दिखा अंसारी परिवार की आपदा में अवसर

Tripathi Gyanendra ( लखनऊ ) : दसकों की हार। मुख्तार अंसारी से रार और घोसी उप चुनाव में लाख जतन के बावजूद भी घुसपैठ न कर पाने का मलाल। ऐसे में मऊ सीट के जरिए ही सही मुख्तार अंसारी के परिवार पर आई आपदा क्या योगी आदित्यनाथ के लिए एक अवसर है। अगर ऐसा नहीं भी है तो छुट्टी के दिन रविवार को सचिवालय खोलवाकर अब्बास की सदस्यता को खत्म करने और उसकी सीट पर उपचुनाव कराने की कवायद करने की इतनी भी जल्दी क्या थी। ये सवाल सियासी सांसों में ठहर से गए हैं। रह गये हैं तो कुछ ऐसे ही और भी सवाल जिनके उत्तर की तलाश योगी को भी है। इन सभी पर एक एक कर बात करेंगे। पहले प्रसंग को समझ लेते हैं।

मऊ सीट के सियासी सफर में जितनी पुरानी माफिया मुख्तार अंसारी के परिवार की मजबूत पकड़ है उतनी ही पुरानी भारतीय जनता पार्टी की पराजय है। मुख्तार का परिवार कभी यहां से हारा नहीं और भारतीय जनता पार्टी कभी जीती नहीं। तब भी जबकि गत लोकसभा चुनाव में इस सीट से जुड़ी लोकसभा सीट भाजपा सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के बेटे को दे कर लड़ी। तब भी जब घोसी उपचुनाव ओमप्रकाश राजभर के भरोसे पर लड़ी। नतीजा सिर्फ और सिर्फ हार में सामने आया। हार दर हार से भाजपा बेचैन है तो लोकसभा और उप चुनाव में मिली पराजय से योगी को भी चैन नहीं है। ये बेचैनी पुरानी है।

मऊ में मुख्तार अंसारी परिवार का दबदबा

मऊ सदर सीट पर मुख्तार अंसारी और उनके परिवार का राजनीतिक प्रभाव बहुत मजबूत रहा है। अंसारी परिवार ने इस सीट पर लगातार जीत दर्ज की है, और यही कारण है कि भाजपा के लिए यह सीट कभी भी जीतने का सपना बनी रही। इस सीट पर मुस्लिम मतदाता की संख्या करीब 1.70 लाख है, जो चुनाव के परिणाम पर अहम भूमिका निभाते हैं। मुख्तार अंसारी ने इस सीट से पांच बार चुनाव जीते। साल 1996 में उन्होंने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद 2002 और 2007 में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतकर इस सीट पर अपना दबदबा बनाए रखा। 2012 में उन्होंने कौमी एकता दल से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की, जबकि 2017 में उन्होंने बसपा से चुनाव जीतकर यह सीट अपने नाम की। 2022 में मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी ने सपा-सुभासपा गठबंधन से चुनाव लड़ा और पहली बार विधायक बने।

मऊ में बीजेपी का संघर्ष

भारतीय जनता पार्टी मऊ में कभी भी सफल नहीं हो पाई। 1991 में जब उत्तर प्रदेश में राम लहर की लहर थी तो भाजपा ने मुख्तार अब्बास नकवी को टिकट दिया था। इस चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन वे केवल 133 वोटों से सीपीआई के हाथों हार गए। 1993 में भाजपा ने नकवी पर फिर से भरोसा किया, लेकिन इस बार भी वे दस हजार वोटों के अंतर से हार गए। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सुभासपा के साथ गठबंधन किया और मऊ सदर सीट पर गठबंधन प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारा। लेकिन बीजेपी की प्रचंड लहर के बावजूद यह सीट भाजपा के हाथ नहीं लगी।

अब समझिए अंसारी परिवार की आपदा में योगी के लिए अवसर

भाजपा नैरेटिव गढ़ने में माहिर है और मोदी योगी नैरेटिव खेल के उम्दा से उम्दा खिलाड़ी। योगी ने प्रशासनिक तौर पर पूर्व में ही अंसारी परिवार को धूल चटाई दी है। शेष है तो सियासी रसूख। योगी भूले नहीं हैं कि इसी एक मात्र परिवार की वजह से भाजपा को न केवल मऊ में बल्कि लोकसभा चुनाव और घोसी उप चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा। ऐसे में अगर इस समय चुनाव कराकर सीट जीत ली जाए तो पराजय दर पराजय का कलंक तो मिटेगा ही बिहार चुनाव में भी यह संदेश जाएगा कि मोदी-योगी के सामने कोई अजेय नहीं है। यही एक मात्र कारण है योगी सरकार की तेजी का। योगी सरकार बिहार चुनाव से पहले मऊ में उपचुनाव कराने की रणनीति में जुटी है। यही कारण है कि सरकार ने इस सीट को रिक्त घोषित करने में गजब की तेजी दिखाई है। शनिवार को जैसे ही अब्बास अंसारी को सजा मिली, सरकार तुरंत हरकत में आ गई। संभावना जताई जा रही थी कि अब्बास इस सजा के खिलाफ सोमवार को हाईकोर्ट में अपील कर सकता है। अगर वह सजा पर स्टे हासिल कर लेता तो सरकार इस सीट को रिक्त नहीं घोषित करा पाती। नतीजतन सरकार ने एक दिन पहले यानी रविवार को छुट्टी का दिन होने के बावजूद अब्बास की विधानसभा सदस्यता समाप्त करते हुए सीट रिक्त घोषित करने का आदेश जारी करा दिया।

Leave a Reply

Cancel Reply

Your email address will not be published.

Follow US

VOTE FOR CHAMPION

Top Categories

Recent Comment